ज़रुर कोई तकदीर का मारा होगा वो,
वरना रात को सड़क पे kयों आवारा होगा वो?
शाम से ही चाँद की राह तकता रहे मगर,
डूबते आफ़ताब का ना सहारा होगा वो।
और फिर सुबह से पूजा करता है सूरज की,
पूनम तक चाँद का ना दुबारा होगा वो।
बचपन जो पुरा हाथ फैला कर बीते,
कभी तो सोचो कितना बेचारा होगा वो!
फिजूल की उम्मीद 'ताइर' लगा बैठा उस से,
ख़ुद का ना हो सका, क्या हमारा होगा वो ?
एक एक शेर बिना सीढ़ी के दिल में उतर गया.. ला जवाब ग़ज़ल.. वाकई.. और हा एक सुझाव भी है.. लिखना बंद मत करिएगा.. वरना हमारा क्या होगा..
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...बधाई.
ReplyDeleteनीरज
बचपन जो पूरा हाथ फैला कर बीते,
ReplyDeleteकभी तो सोचो कितना बेचारा होगा वो!
बहुत खूब लिखा है आपने ..अच्छा लगा इसको पढ़ना
my modern galib, maze to hai aap ki likhae me
ReplyDeleteशाम से ही चाँद की राह तकता रहे मगर,
ReplyDeleteडूबता आफ़ताब का ना सहारा होगा वो।
vah vah......taeer
बचपन जो पूरा हाथ फैला कर बीते,
ReplyDeleteकभी तो सोचो कितना बेचारा होगा वो!
--बहुत बढ़िया.
शाम से ही चाँद की राह तकता रहे मगर,
ReplyDeleteडूबते आफ़ताब का ना सहारा होगा वो।
"very touching"
bhut bhavuk rachana. sundar.
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