ग़ज़ल गुलाब ना माहताब लिखते हैं,
हम तो तेरे सवाल का बस जवाब लिखते हैं।
जानते हैं सब लिखा हुआ है पहले से,
फ़िर भी क्यों जाने, लोग ख्वाब लिखते हैं?
सूरत उस चाँद सी पायी है तुने मगर,
सीरत जान कर ही हम आफ़ताब लिखते हैं।
हम तो चंद शेरो में बात तमाम कर दे,
आप जाने कैसे, मोटी किताब लिखते हैं?
हाल-ए-फकीर में इस लिए जी रहा 'ताइर',
वो हासिल-ए-ऊंस को ही खिताब लिखते हैं।
वाह ताईर मिया.. छा गये तुस्सी.. वैसे तो पहले ही शेर में आपने चारो खाने चित्त कर दिया पर.. बाकी के शेर भी बराबर वज़नदार है.. खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteजानते हैं सब लिखा हुआ है पहले से,
ReplyDeleteफ़िर भी क्यों जाने, लोग ख्वाब लिखते हैं?
वाह! वाह!!
***राजीव रंजन प्रसाद
हम तो चंद शेरो में बात तमाम कर दे,
ReplyDeleteआप जाने कैसे, मोटी किताब लिखते हैं?
baut khoobsurat sher.....
भाईजान;
ReplyDeleteआप तो लाजवाब लिखते हैं !
bahut khoob.....
ReplyDeleteजानते हैं सब लिखा हुआ है पहले से,
ReplyDeleteफ़िर भी क्यों जाने, लोग ख्वाब लिखते हैं?
wah bahut hi nayab khubsurat gazal badhai
लाज़वाब लिखते हैं !
ReplyDeleteबधाई
डा.चंद्रकुमार जैन
हम तो चंद शेरो में बात तमाम कर दे,
ReplyDeleteआप जाने कैसे, मोटी किताब लिखते हैं?
वाह वाह वाह वाह ...जनाब
आप को पहली बार पढने का मौका मिला और पहली बार में ही आप के काईल हो गए. बेहद खूबसूरत अंदाज़ की ग़ज़ल लिखी है आप ने. दिली मुबारकबाद कुबूल करें.
नीरज
हम तो चंद शेरो में बात तमाम कर दे,
ReplyDeleteआप जाने कैसे, मोटी किताब लिखते हैं?
wah wah!
bahut khuub kah gaye aap bhi!
sher pasand aaya