Sunday, December 23, 2012

हालात-ए-देश की बात क्या करूँ ?

इस हालात-ए-देश की बात क्या करूँ 
मैं गुस्सा हूँ, शर्मसार हूँ और फ़िर डरूं ?

यहाँ रोज़ होता है मासूमों से खिलवाड़
तबाह कर ज़िंदगियाँ  गुनहगार जिए आज़ाद
जिस 'औरत' को देवी बना के पूजा जाता है
उसी को हवस से सरेआम रौंदा जाता है
संस्कृति और तहज़ीब का दावा होता है
पर आवाज़ जो उठाये उसे कुचला जाता है !

माँ, बहेन, बेटियाँ खॉफ़ का शिकार है 
समाज में फैला ये कैसा विकार है 
केवल बातों और वादों से चल रही सरकार है
उस से कोई उम्मीद भी अब रखना बेकार है l 

कुछ करने का, बदलने का अब जो सबका विचार है 
तो इस आगाज़ को अंजाम तक ज़रूर ले जाएंगे,
या फिर येही मान लें, हम सभी लाचार है l 

Tuesday, December 4, 2012

ना तहज़ीब की बात करेंगे ना मज़हब की...

ना तहज़ीब की बात करेंगे ना मज़हब की,
होगी जो बात, अब होगी हम सब की l

छोटे छोटे टुकडो में बाँट लेना खुद को,
फितरत-ए-इन्सा देखो चल रही गज़ब की l  

मकसद लापता और राह चले गुमराह,
इबादत भी ऐसी भला किस मतलब की।

है अगर मौजूद वोह हर एक शेय में,
मारते जिसे तुम वो भी औलाद है रब की।

शामिल ना करो तुम उसे रवाज़ो में अपने,
तोड़ चूका 'ताइर' वो दिवार है कब की। 

Thursday, October 4, 2012

'भारतवासी' मर मर के जिया है...


अब उसे किस्तों में क्यों बाँट दिया है
देश को 'बेच खाना' जब तय कर लिया है?

कभी कच्चा तेल कभी ऍफ़डीआई रिटेल 
कभी पानी के नाम पर घोटाला किया है !

सुनेहरे सपनों के झाल में यूँ उलझाया
महंगाई का ज़हर सबने सब्र से पिया है l 

'आम आदमी' की सरकार क्या खूब चली
हर एक 'भारतवासी' मर मर के जिया है l 

Saturday, September 22, 2012

अल्लाह बचाए या राम !

इस तरह हर रोज़, नीलाम हो रहा सरेआम,
वजूद-ए-हिन्दोस्ताँ मिट जाएगा, रहेगा सिर्फ नाम !

जनता आम और ज़िन्दगी कोडियों के दाम,
भ्रष्टाचारी और लाचारी, है सरकार का काम !

एक होने की बात पर, एक एक कर बंट जाए,
खुद का मतलब निकलते ही, हो जाए नियत हराम !

सदियों पुरानी ग़लती बड़े फक्र से दोहराई है,
तक़दीर की है बात अब, अल्लाह बचाए या राम !

Thursday, September 13, 2012

तब तक !

सरकार 'लाचार' हैं
देश को लूटें बगैर चल नहीं सकती
जनता 'बीमार' हैं
बातें करती हैं  पर लड़ नहीं सकती !

सभी देशभक्त है यहाँ पर
खुद का फ़ायदा हो तब तक
सभी ईमानदार है यहाँ पर
किंमत छोटी हो तब तक !

देश की चिंता सबको है
सिर्फ काम ना सूझे तब तक
इज्ज़त सबकी सलामत है
किस्सा ना खुले तब तक !

Wednesday, August 15, 2012

देश यूँ ही चला है, बस यूँ ही चलेगा !

आज फिर एक बार चर्चे होंगे महान इतिहास के
आज फिर रंगो से देशभक्ति ज़ाहिर होगी
आज घर के बड़े, बच्चों को आज़ादी का पाठ देंगे
मीडिया वाले नए 'फ्रीडम फाइटर्स' ढूंढ निकालेंगे !


फिर भगतसिंह-सुखदेव की दास्ताँ कहेंगे
फिर गाँधी के सत्याग्रह की दुहाई आज देंगे
फिर सरदार के संकल्प की मिसाल दोहराएंगे
फिर आज़ाद का वो आज़ाद मिज़ाज दिखाएंगे... 
हर साल की तरह इस साल भी आज़ादी का
सिर्फ चर्चा, दिखावा और व्यापार होगा


कल सब फिर उसी चक्कर में लग जाएंगे
अपनी अपनी हैसियत से 'देशलूट' लगाएंगे
आने वाले साल तक हर देशभक्त सोया रहेगा 
रोज़ाना ख़बर देख के, पढ़ के, सुन के कहेगा 
'यहाँ ना कुछ बदला है, ना कुछ बदलेगा,
ये देश यूँ ही चला है, बस यूँ ही चलेगा !'

Sunday, June 17, 2012

आख़िर हम चलें है किधर?


सुबह सुबह देखो अखबार के पन्ने
गुनाहों का जैसे कोई ग्रन्थ हो
कहीं भ्रष्टाचार कहीं डकैती
कहीं खून तो कहीं बलात्कार
कहीं आतंकी हमला
कहीं युद्ध का डंका
अच्छा कुछ पढने को
नया कुछ सिखने को
नज़र दौड़े भी तो कहाँ तक?

मन में कभी व्यथा तो कभी खौफ़
हावी हो जाते है इसकदर
की सवाल इतना ही होता हैं
आख़िर हम चलें है किधर?
कैसा जहाँ बनाना है हमें
आने वाली पीढ़ी को क्या दे जाना है ?

हो सकता है अखबार से निगाह चुरा लें
निगाह किसी और 'मीडिया' पे लगा लें
बात मगर वहीँ आ जाती है
आख़िर हमारी ये दुनिया
किस जानिब चले जाती है
हम उसे चलाते हैं
या लालच बहकाती है?
बेहतर कल की तो बातें है सारी
नहीं बची हम में खुद्दारी
धरती रहेगी जहाँ की तहाँ शायद
ले डूबेगी हमें खुदगर्ज़ी हमारी !

Sunday, March 4, 2012

वोही सुकून नहीं है

एक बिल्डिंग से निकल कर
वेहिकल पे थोड़ी दूर चल कर
एक बड़ी सी बिल्डिंग में
घूस जाते है शौपिंग के बहाने
या मूवी का लुत्फ़ उठाने
और कुछ भी न सूझे तो खाना दबाने!
वैसे तो कट जाता है
पर सोचो तो शहर का जीवन
बहोत ही लगता है पकाने!

पूरा हफ्ता कमाई में गुज़रे
और वीकेंड फ़िज़ूल खर्ची करने में
हर बार फिर भी वो ही सवाल
'इस बार कहाँ जाए', दिल बहलाने?
यूँ ही बेमतलब गुज़रती चलती है
ज़िन्दगी हर रोज़ आहें भारती है ।

थोड़ी सी आज़ादी इन मकानी जंगलों से,
थोडा सा सुकून चाहिये
जो ना मिले इंसानी दंगलों से ।
बेसबब इधर उधर भटकते रहना
पूछे कोई हाल तो 'कट रही है' कहना
इसी में उम्र तमाम हो रही हैं,
लेकिन मन को जो चाहिए
वो सुकून नहीं है,
वोही सुकून नहीं है ।

Wednesday, January 25, 2012

ऐसा भी नहीं...

ऐसा भी नहीं की हमनें अब तक कुछ किया नहीं,
पर बात ये भी है, जीना चाहिए जैसे, जिया नहीं


कभी दर्द कभी तनहाई कभी जश्न के बहाने पीया,
पर ढूंढते रहे जिसको वो सुकून में ही पीया नहीं।

कहने को तो जहाँ से किसी बात की कमी नहीं,
दिल ने क्या कर ली उंस की ख्वाहिश, दिया नहीं।

शुक्र कर खुदा 'ताइर' को कोई ऐतबार नहीं है तेरा,
इस सबब-ए-हाल खुद को माना, नाम तेरा लिया नहीं।