कितने ही राज़ खोल देती दिल के,
आँखे उनकी आँखों से मिल के।
देख उन्हें ज़बान साथ छोड़ देती,
और ये होठ रह जाते सिल के।
मुस्कान जो बिखेर जाए वो हम से,
महकते गुल-ए-अरमान खिल के।
छा जाए जब वो शमा बन कर,
कर दे रोशन लम्हें मेहफिल के।
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
पहुँचा जितना करीब मंजिल के।
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
बहुत खूब कहा इस में आपने ...
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
bahut badhiya........kya bat hai...
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
क्या शेर मारा है ताईर मिया.. रदीफ़ कमाल का पकड़ा है आपने..
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
bahut sundar
anubhuti se bhara
sundar rachana ke liye badhai.
ReplyDeleteदेख उन्हें ज़बान साथ छोड़ देती,
ReplyDeleteऔर ये होठ रह जाते सिल के।
मुस्कान जो बिखेर जाए वो हम से,
महकते गुल-ए-अरमान खिल के।
छा जाए जब वो शमा बन कर,
कर दे रोशन लम्हें मेहफिल के।
wah wah bahut hi sundar badhai
बहुत ही लाजवाब लिखा भाई हाँ.खुदा बरकत दे आपकी कलम को और साथ ही दे ढेर सारे गम ताकि कुछ और दर्द भरे शेर हमतक आ सकें.वो ग़ालिब साहब ने कहा है न...
ReplyDeleteदर्द को दिल में दे जगह,इल्म से शायरी नहीं होती.
अब क्या कहूँ?बहुत कह दिया.मस्त लिखा है
आलोक सिंह "साहिल"
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
ye sher jayada pasand aaya taeer ji
कितने ही राज़ खोल देती दिल के,
ReplyDeleteआँखे उनकी आँखों से मिल के।
--बहुत खूब..उम्दा!!
पहली दो और अन्तिम दो पंक्तिया बड़ी ही खुबसूरत है... सुंदर रचना
ReplyDeleteउतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
--bahut khuub!!!hota hai! aksar aisa hi hota hai!
"उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।"
बहुत प्यारा शेर है, बधाई स्वीकारें।
उतना ही दूर जैसे हो गया 'ताइर',
ReplyDeleteपहुँचा जितना करीब मंजिल के।
bahhut hi khoobsoorat sher..
likhte rahe..