Tuesday, June 10, 2008

वो छुप कर ज़माने से...

वो छुपकर ज़माने से मिलना सुनी गलियों में
वो दबी हुई बातें पिरोना उंगलियों में
चुपचाप बैठे बैठे लम्हों को जोड़ना
मिला कर सिर्फ़ आँखे अनकही बोलना

आज भी मेह्कता हैं हर वो पल
गुज़रा था संग तेरे जो कल

दिल में खूबसूरत तसवीर बना के
तनहा लम्हों को यादो से सजा के
ले जाता हैं दूर मुझे कहीं इस जहाँ से
मिलती है मुस्कान अश्कों से वहाँ पे

और मन शुक्रिया करता है ज़िंदगी का उस पल
जब याद आता है तुजसे मुलाक़ात का वो गुज़रा हुआ कल...

3 comments:

  1. वो दबी हुई बातें पिरोना उंगलियों में
    क्या बात कही है.. ताईर मिया.. बस दिल को छलनी कर गयी..

    ReplyDelete
  2. वाज जी, बहुत खूब.

    आईये, आपका स्वागत है हिन्द ब्लॉगजगत में. नियमित लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  3. क्या बात है.....वही अंदाजे -गुफ्तगू

    ReplyDelete