Sunday, June 29, 2008

अब भी वक्त हैं...

अब भी वक्त हैं, पेहचान ले,
जिंदगी मुझे तू अपना मान ले।

बदनाम न हो खुदा इस लिए,
लोग मुझे कसूरवार जान ले।

चलता कैसा कारोबार यहाँ देखो,
सब आंसू के बदले मुस्कान ले।

हर घाव कागज़ पर क्या लिखूं?
तू ख़ुद का ही झाँख गिरेबान ले।


थोड़े वक्त का मेहमान है 'ताइर',
आ के उतार अपना एहसान ले।

12 comments:

  1. जिंदगी मुझे तू अपना मान ले।
    कमाल की लाइन है.. बहुत अच्छे ताईर मिया

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  2. चलता कैसा कारोबार यहाँ देखो,
    सब आंसू के बदले मुस्कान ले।

    बहुत खूब लिखा है आपने

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  3. चलता कैसा कारोबार यहाँ देखो,
    सब आंसू के बदले मुस्कान ले।

    बहुत खूब

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  4. हर घाव कागज़ पर क्या लिखूं?
    तू ख़ुद का ही झाँख गिरेबान ले।

    -बढ़िया.

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  5. हर घाव कागज़ पर क्या लिखूं?
    तू ख़ुद का ही झाँख गिरेबान ले।

    wah taeer ji kya baat kahe di hai
    aapki gazal ki khasiyat hi yahi hai ki aap har sher main dil se daad loot lete ho

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  6. थोड़े वक्त का मेहमान है 'ताइर',
    आ के उतार अपना एहसान ले।


    vah behad umda....girebaan val sher bhi khoob hai....

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  7. jeevan-samvad bahut sundar raha....

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  8. हर घाव कागज़ पर क्या लिखूं?
    तू ख़ुद का ही झाँख गिरेबान ले।
    "wah bhut sunder"

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  9. सरसरी ही सही कई चीज़ें देख गया .आपकी काविशों और कोशिशों को देख तबियत खुश हो गयी .
    कई शे'र जेहन नशीं होने की कुवत रखते हैं .दुआ यही है ,जोर काला और ज्यादा .कभी फ़ुर्सत मिले तो इस लिंक पर भी जाएँ और अपनी कीमती राय से नवाजें .www.shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com और www.hamzabaan.blogspot.com
    जनाब आपका ब्लॉग है बहुत खूबसूरत .मुबारक हो .अल्लाह नज़र-बद से बचाए .आमीन.

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  10. aap ko padhana bhut aacha laga. ati uttam. likhate rhe.

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  11. "shabon se trasha hai gazal ko is treh, aaj vo hmara bhee ek salam le"

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