Wednesday, June 4, 2008

एक चाह ये जीने की...

एक चाह ये जीने की, जो मिटती नहीं,
एक प्यास-ए-ऊंस, की बुझती नहीं।

एक मेरा हाल, हर समज से परे,
एक मेरी फितरत, जो बदलती नहीं।

एक है तू, की हर ख़याल में शामिल,
एक मेरी हस्ती, कहीं दिखती नहीं।

एक नशा धुएँ का, पल दो पल का,
एक आग इस दिल की, बुझती नहीं।

एक मेरी सूरत, हाल-ए-दिल बोल दे,
एक मेरी सीरत, ज़बान साफ खोलती नहीं।

एक तेरा जहाँ, हिसाब-किताब में कायम,
एक दुनिया- ए-'ताइर', हकीकत बनती नहीं।

2 comments:

  1. एक मेरी सूरत, हाल-ए-दिल बोल दे,
    एक मेरी सीरत, ज़बान साफ खोलती नहीं।

    बहुत अच्छे ताईर मिया... क्या बात है

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