शोर-ए-सन्नाटा में हम जागते हैं रात भर,
बीते लम्हों में लम्हें गुज़ारते हैं रात भर।
यारों के संग जहाँ मौज मस्ती थी कभी,
उन्ही गलियों से वो पल मांगते हैं रात भर।
बादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
एक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।
माहोल-ए-तन्हाई में सिगरेट-ओ-अल्फाज़,
धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।
सब हकीकत दिन में दिखा दे जहाँ मगर,
'ताइर', सपनें क्यों भला भागते हैं रात भर?
धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।
ReplyDeleteक्या ग़ज़ल बाँधी है ताईर मिया.. बहुत खूब एक एक शेर लाजवाब है
बादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
ReplyDeleteएक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।
बहुत ही सुंदर ..बेहद अच्छी लगी यह
इसी को कहते हैं शब्दों को उलझाना और उससे कही जायदा शब्दों को सुलझाना
ReplyDeleteबादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
ReplyDeleteएक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।
wah kya baat kahai hai aapne!
माहोल-ए-तन्हाई में सिगरेट-ओ-अल्फाज़,
ReplyDeleteधागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।
mere dil ki baat......
वाह वाह, बहुत खूब. और लिखिये.
ReplyDeleteTaeer aapki gazal padhi har ek sher nagine ki tarah tha
ReplyDeletebahut bahut achha laga aapko padhna
एक उम्दा ग़ज़ल जो लिखी है 'तईर'
ReplyDeleteग़ज़ल नही, बस लगती है शेरो की बारात भर!!
बहुत खूब!!
fantastic outstanding mindblowing..chautha shabd..yaad nahi aa raha :D
ReplyDeletebahut badhiya ghazal
माहोल-ए-तन्हाई में सिगरेट-ओ-अल्फाज़,
धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।
yeh to maano shabd nahi iski taareef karne ke liye..
likhte rahe..
vha aapki kavita ka to javab hi nahi hai. bhut badhiya.
ReplyDeleteबादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
ReplyDeleteएक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।
"wah bhut khub"