Thursday, June 19, 2008

रात भर...

शोर-ए-सन्नाटा में हम जागते हैं रात भर,
बीते लम्हों में लम्हें गुज़ारते हैं रात भर।

यारों के संग जहाँ मौज मस्ती थी कभी,
उन्ही गलियों से वो पल मांगते हैं रात भर।

बादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
एक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।

माहोल-ए-तन्हाई में सिगरेट-ओ-अल्फाज़,
धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।

सब हकीकत दिन में दिखा दे जहाँ मगर,
'ताइर', सपनें क्यों भला भागते हैं रात भर?

11 comments:

  1. धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।

    क्या ग़ज़ल बाँधी है ताईर मिया.. बहुत खूब एक एक शेर लाजवाब है

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  2. बादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
    एक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।

    बहुत ही सुंदर ..बेहद अच्छी लगी यह

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  3. इसी को कहते हैं शब्दों को उलझाना और उससे कही जायदा शब्दों को सुलझाना

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  4. बादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
    एक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।

    wah kya baat kahai hai aapne!

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  5. माहोल-ए-तन्हाई में सिगरेट-ओ-अल्फाज़,
    धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।

    mere dil ki baat......

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  6. वाह वाह, बहुत खूब. और लिखिये.

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  7. Taeer aapki gazal padhi har ek sher nagine ki tarah tha
    bahut bahut achha laga aapko padhna

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  8. एक उम्दा ग़ज़ल जो लिखी है 'तईर'
    ग़ज़ल नही, बस लगती है शेरो की बारात भर!!

    बहुत खूब!!

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  9. fantastic outstanding mindblowing..chautha shabd..yaad nahi aa raha :D

    bahut badhiya ghazal

    माहोल-ए-तन्हाई में सिगरेट-ओ-अल्फाज़,
    धागा-ए-धुएँ से ग़ज़ल बांधते हैं रात भर।

    yeh to maano shabd nahi iski taareef karne ke liye..

    likhte rahe..

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  10. vha aapki kavita ka to javab hi nahi hai. bhut badhiya.

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  11. बादलों से छुप छुप कर झाँख रहे चाँद में,
    एक शख्स की सूरत हम तराशते हैं रात भर।
    "wah bhut khub"

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