Monday, June 23, 2008

रोना है अगर...

रोना है अगर, कुछ इस तरह से रो,
की आँसू ना बहे, आवाज़ ना हो।

छोड़ दो आज परवाह दुनिया की,
कहे जो सदा-ए-दिल तुम सुनो।

छूना है फ़लक, अरमाँ है बुलंद,
फैलाओ पंख और ख्वाबों को जीयो।

ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।

करता है 'ताइर' अर्ज़ इतनी तुम से,
सब है हासिल, अपने आप से गर मिलो।

12 comments:

  1. बहुत खूब ताईर मिया.. एक से एक लाजवाब ग़ज़ल ला रहे है आप तो.. बहुत अच्छे

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  2. छोड़ दो आज परवाह दुनिया की,
    कहे जो सदा-ए-दिल तुम सुनो।

    बहुत खूब लिखते हैं आप

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  3. अब तो पूछना लाजमी है, के क्या खाया था वीकेंड पर तईर मियाँ??
    हैट्रिक!!!!
    ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
    ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
    बहुत खूब...

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  4. bahot bahot shukriya aap sabhi ka hosla afzai ke liye...

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  5. ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
    ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
    vha sundar bhav sundar rachana.

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  6. छूना है फ़लक, अरमाँ है बुलंद,
    फैलाओ पंख और ख्वाबों को जीयो।

    bahut badhiya bat.......

    aor ye vala sher...

    करता है 'ताइर' अर्ज़ इतनी तुम से,
    is gajal ka sabse badhiya sher laga..

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  7. ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
    ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।

    wah har sher lajawab,ye bahut achha laga,badhai

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  8. वाह!! बड़ा ही निराला अंदाज है, जनाब!१

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  9. छूना है फ़लक, अरमाँ है बुलंद,
    फैलाओ पंख और ख्वाबों को जीयो।

    मुझे नही पता की यह गजल है या कविता लेकिन जो कुछ भी है बड़ी लाजवाब है

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  10. Gazal main aapki maharath dekh li
    ab to aapse seekhna hoga
    boliye sikhayenge na?

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  11. first time seen ur blog, beautiful place for poetry, liked it ya

    Regards

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  12. wah bahut khuub sandesh diya hai ---ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
    ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
    sach hi kahte hain aap--

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