रोना है अगर, कुछ इस तरह से रो,
की आँसू ना बहे, आवाज़ ना हो।
छोड़ दो आज परवाह दुनिया की,
कहे जो सदा-ए-दिल तुम सुनो।
छूना है फ़लक, अरमाँ है बुलंद,
फैलाओ पंख और ख्वाबों को जीयो।
ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
करता है 'ताइर' अर्ज़ इतनी तुम से,
सब है हासिल, अपने आप से गर मिलो।
बहुत खूब ताईर मिया.. एक से एक लाजवाब ग़ज़ल ला रहे है आप तो.. बहुत अच्छे
ReplyDeleteछोड़ दो आज परवाह दुनिया की,
ReplyDeleteकहे जो सदा-ए-दिल तुम सुनो।
बहुत खूब लिखते हैं आप
अब तो पूछना लाजमी है, के क्या खाया था वीकेंड पर तईर मियाँ??
ReplyDeleteहैट्रिक!!!!
ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
ढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
बहुत खूब...
bahot bahot shukriya aap sabhi ka hosla afzai ke liye...
ReplyDeleteना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
ReplyDeleteढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
vha sundar bhav sundar rachana.
छूना है फ़लक, अरमाँ है बुलंद,
ReplyDeleteफैलाओ पंख और ख्वाबों को जीयो।
bahut badhiya bat.......
aor ye vala sher...
करता है 'ताइर' अर्ज़ इतनी तुम से,
is gajal ka sabse badhiya sher laga..
ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
ReplyDeleteढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
wah har sher lajawab,ye bahut achha laga,badhai
वाह!! बड़ा ही निराला अंदाज है, जनाब!१
ReplyDeleteछूना है फ़लक, अरमाँ है बुलंद,
ReplyDeleteफैलाओ पंख और ख्वाबों को जीयो।
मुझे नही पता की यह गजल है या कविता लेकिन जो कुछ भी है बड़ी लाजवाब है
Gazal main aapki maharath dekh li
ReplyDeleteab to aapse seekhna hoga
boliye sikhayenge na?
first time seen ur blog, beautiful place for poetry, liked it ya
ReplyDeleteRegards
wah bahut khuub sandesh diya hai ---ना मुर्झाओ किसी फूल की तरह,
ReplyDeleteढल जाए दिन तब चाँद बन खिलो।
sach hi kahte hain aap--