Tuesday, July 8, 2008

ना खुशी ना ग़म ना ख्वाहिश कोई...

ना खुशी ना ग़म ना ख्वाहिश कोई,
अब जिंदगी से रही न गुज़ारिश कोई।

खुदा भी थक गया इम्तिहान ले कर,
तभी नही करता वो आज़माइश कोई।

माफ़ किया तुझे, सब खता के बाद,
मत कर अब और तू फरमाईश कोई।

आंखों की प्यास आईने में झलक उठी,
सालों से नही हुई इन में बारिश कोई।

'ताइर' जी रहा बिल्कुल बेफिक्र यहाँ,
फकीर के खिलाफ़ क्या करें साज़िश कोई ???

8 comments:

  1. खुदा भी थक गया इम्तिहान ले कर,
    तभी नही करता वो आज़माइश कोई।

    माफ़ किया तुझे, सब खता के बाद,
    मत कर अब और तू फरमाईश कोई।
    wah bahut hi umada gazal,ye sher bahut hi pasand aaye.

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  2. माफ़ किया तुझे, सब खता के बाद,
    मत कर अब और तू फरमाईश कोई।
    bahut badhiya...

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  3. खुदा भी थक गया इम्तिहान ले कर,
    तभी नही करता वो आज़माइश कोई।

    माफ़ किया तुझे, सब खता के बाद,
    मत कर अब और तू फरमाईश कोई।

    बहुत अच्छा लिखते हैं आप ..बहुत खूब

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  4. वाह!! क्या बात है.

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  5. ब्लॉग जगत में हार्दिक स्वागत आपका !

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  6. ताइर जी,

    सोचा आपने कुछ अलग है, पढ़ कर अच्छा लगा।

    आपका धन्यवाद, आपने हमारा ब्लॉग पढ़ा।
    आप का इशारा किस ओर है मैं जानती हूं।
    लेकिन ये महज 'कहानी' है।
    हम तो सिर्फ इतना जानते हैं---

    "अपना गम सब को बताना है तमाशा करना
    अब तो हाल-ए-दिल 'वो'ही पूछेगा तो बताएंगे।"

    आज भाग २ पेश है कैसा लगा, अपनी राय जरूर दें।

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  7. bhut sundar. or sundar rachanao ke liye meri shubhakamnaye.

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  8. आंखों की प्यास आईने में झलक उठी,
    सालों से नही हुई इन में बारिश कोई।
    " bemisaal , ye sher pasand aaya"

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