कुछ महीनों पहले लिखी ये ग़ज़ल आज फ़िर से दोहराने का मन कर रहा हैं...
अब रिश्ता ख़तम करना लाज़मी हो गया,
की मैं तुम्हारे लिए, 'आम आदमी' हो गया।
नूर था कभी जो फलक के चाँद का,
आज वोही शख्स, बंजर ज़मीं हो गया।
कभी थी मुकम्मल हर तमन्ना तुजसे,
देख आज तू, दिल में कमी हो गया।
रोशन था हर मंज़र तेरे ही ख्याल से,
अब बहे जो आँखों से, वो नमी हो गया।
छोड़ दो 'ताइर' को बस उसके हाल पर,
यादों से ही जहाँ उसका, रेशमी हो गया।
bhut sundar gajal. badhai ho.
ReplyDeleteकभी थी मुकम्मल हर तमन्ना तुजसे,
ReplyDeleteदेख आज तू, दिल में कमी हो गया।
रोशन था हर मंज़र तेरे ही ख्याल से,
अब बहे जो आँखों से, वो नमी हो गया।
आपका लिखा हुआ पढ़ना एक अजब सा सकून देता है ..बहुत खूब
रोशन था हर मंज़र तेरे ही ख्याल से,
ReplyDeleteअब बहे जो आँखों से, वो नमी हो गया।
badhiya khyaal . sundar gajal
कभी थी मुकम्मल हर तमन्ना तुजसे,
ReplyDeleteदेख आज तू, दिल में कमी हो गया।
kya bat hai.......bahut khoob....
bahut accha hai...bahut behtarin....
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है,बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
अब रिश्ता ख़तम करना लाज़मी हो गया,
ReplyDeleteकी मैं तुम्हारे लिए, 'आम आदमी' हो गया।
bahut badhiya...
अब रिश्ता ख़तम करना लाज़मी हो गया,
ReplyDeleteकी मैं तुम्हारे लिए, 'आम आदमी' हो गया।
bahut khub likha hai
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअब रिश्ता ख़तम करना लाज़मी हो गया,
ReplyDeleteकी मैं तुम्हारे लिए, 'आम आदमी' हो गया।
"sub kuch in pankteeyon me seemt aaya ho jaise"
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