Wednesday, July 30, 2008

ब्लास्ट्स के बाद...

ब्लास्ट्स के बाद मन कुछ इस हाल में था की कुछ लिखने पढने का मन नहीं कर रहा था... बस एक ही सवाल था और है की...आख़िर और कब तक? क्यों हम कुछ नहीं कर रहे? क्यों इतने बड़े देश में कोई भी नेता नहीं जो जवाब दे कुछ गिने चुने कायरों को?

और कल आख़िर जवाब मिल ही गया जैसे... इतना ही ख्याल आया की आख़िर नेता भी तो आते हैं समाज से... लोग कहते हैं की वो नेता ऐसा बोलता हैं , और वो वैसा कहता हैं... पर मैं इतना ही समजता हूँ की नेता भी तो वोही बोलेंगे जो लोग सुन ना चाहते हैं... कोई धर्म के नाम पर...कोई जाती के...कोई भाषा के...कोई गरीबी के... सब अपने अपने तरीके से राजनीती करते हैं...

पर कामियाबी तो हम ही देते हैं ना उन्हें? आख़िर इस देश की जनता को भी तो वो ही सब बातों में मज़ा आता हैं... सब एक दुसरे पे ऊँगली उठाते हैं...बस....और कुछ नहीं...

लोगों ने कब किसी से हिसाब माँगा की ५ साल में कितना विकास हुआ? लोगों ने कब सुरक्षा को ले कर आवाज़ उठाई सरकार के खिलाफ़? शायद कभी नहीं...
सब राम सेतु को ले कर दंगा करेंगे... कहीं कोई दरगाह रास्ता बड़ा करने के लिए हटानी पड़े तो बवाल करेंगे... सबको आरक्षण चाहिए... हर जगह पे शार्टकट...

मैंने देखा है ... दो नए लोग एक दुसरे से मिलते हैं और जहाँ थोडी बातचीत होती हैं...सीधा ही पूछते हैं...आप किस भगवन में मानते हैं? किसकी पूजा करता हैं? आप का वतन कौन सा हैं?
और बात वहां नही रूकती... सामने वाला हर सवाल का जवाब भी विस्तार से देता हैं...(कर लो बटवारा...)

हर बात राजनीती से नहीं जुड़ी... हर बात जुड़ी है अपने समाज से...व्यक्तिगत ख्याल से...
पर शायद...सारी बातें फिजूल ही हैं...किसी को नहीं बदलना यहाँ... ओर ये भी अनुभव किया है मैंने की अगर कोई इन सब से ऊपर उठ के जीना चाहता भी है तो शान्ति से लोग जीने नहीं देते...

आज... २ साल पहले हुए मुंबई बोम्ब ब्लास्ट के बाद लिखी एक कविता फ़िर से लिखना लाज़मी लगता हैं...

यहाँ इतनी छोटी हैं हस्ती हमारी
जब चाहे कोई मिटा देता आ के,
पैसे का हथियार ओर हथियार से मौत
बढती नहीं दुनिया इस सोच से आगे...

बाज़ार में इस जहाँ के, बिक जाए वजूद,
ज़हन में झांखो, ये सच है या झूठ?
शामिल हैं हम भी इस तबाही की साज़िश में,
मौत के हाथों जिंदगी बेचने की गुजारिश में...

खामोश रह कर तमाशा देखते हैं
खुली आँखों पर भी परदा रखते हैं,
खुदगर्जी हमारी ले डूबेगी हम सब को
आज किसी ओर की, तो अपनी बारी आएगी कल को...

8 comments:

  1. bhut sahi likha hai. har samya lagta hai kahi kuch kho na jaye.

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  2. सहमत हूँ आपसे.
    भगवन से प्रार्थना है कि इन लोगों को सुबुद्धि दें.

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  3. मन तो सच में खिन्न हो जाता है कि आकिर कब तक ये सब चलता रहेगा? सही बातें लिखी हैं आपने।

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  4. क्या कहूँ कुछ खबरे देखी थी उन परिवारों की जिनके घर की रौशनी ये बम ले गये,मन खिन्न है ओर गुस्से में भी.....

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  5. अच्छा लगा आपको पढ़ना..सहमत हूँ आपसे.

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  6. खामोश रह कर तमाशा देखते हैं
    खुली आँखों पर भी परदा रखते हैं,
    खुदगर्जी हमारी ले डूबेगी हम सब को
    आज किसी ओर की, तो अपनी बारी आएगी कल को.
    " yes truley said, the way u have composed this article it really describes and reflects ur pain on the subject"

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  7. कल बहोत दिनों बाद मेरा सिटी एरिया में जाना हुआ... कुछ चौराहों पर पुलिस कड़ी थी किसी न किसी को घेरे हुए..... वापस आ रही थी तो सिग्नल पर रुकना हुआ...वह पहलेसे ही एक बस आके खड़ी रही थी ... जितने लोग मेरे आगे खड़े थे उन सबकी नज़र बस को ऐसे देख रही थी जैसे की अभी उसमे से बम फटने वाला हों !! सब की नज़र में दहेशत थी .... पता नहीं ये सब कब तक चलता रहेगा.....

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