Saturday, August 2, 2008

अब कहाँ वो दिन???

सर जी (डॉ अनुराग) को पढ़ते पढ़ते काफ़ी बार कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं... कभी दिल खुश होता हैं तो कभी उस वक्त की याद से ग़मगीन...मगर फ़िर भी एक अलग सी कशिश तो रहती ही हैं...सर जी का शुक्रिया अदा करता हूँ बीते हुए लम्हों को फ़िर से जिंदा करने के लिए...
हर किसी के जीवन के कुछ खास दिन जुड़े रहते हैं कॉलेज के सालों से... तो आज 'फ्रेंडशिप डे' पर ये कविता उन्ही लम्हों के नाम...

अब कहाँ वो कॉलेज के दिन
और कहाँ वो बोरिंग लेक्चर्स ?
अब नहीं कोई एक्साम का टेंशन
ना कोई टोकने वाले प्रोफेसर्स...
गुज़र गए वो दिन
जिस से भागते थे हम कभी
कैम्पस में दुनिया जीतने के
सपने सजाते थे सभी...

बहार निकल कर जैसे खो गए भीड़ में
लड़ते हैं अब कुछ कर दिखाने की जिद्द में...
लेकिन नोटों की चमक और सिक्कों की खनक
फीकी पड़ जाती हैं...
पॉकेट मनी से जमी यारों की महफिल
जब याद आती हैं...
हर छोटी खुशी पे जो जश्न मनाते थे
कैसी भी मुश्किल में साथ निभाते थे...

मगर आज हर दिन एक सा ही रहता हैं
खुशी या ग़म सब चुपचाप बहता हैं
शायद इसी लिए दिल
उन दिनों को भूल नहीं पाता
और फरियाद करता रहे की...
वक्त लौट क्यों नहीं आता?
वो वक्त, लौट क्यों नहीं आता???




5 comments:

  1. ऐसा ही मैं भी सोचता हू शायद सब लोग..... हैप्पी फ्रेंडशिप डे

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  2. मैं भी ऐसा ही हू ताईर भाई.. बहुत बढ़िया लिखा आपने..

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  3. jub samay gujar jata hai..tub sub accha lagta hai :)

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  4. वक्त लौट क्यों नहीं आता?
    वो वक्त, लौट क्यों नहीं आता???

    "sach kha aapne, yhee sval subke mun mey hotta hai, waqt laut kr kyun nahee aataa?????"

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  5. aachhe din sunhera din...aur sooni yaaden...

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