पिछले हफ़्ते मुंबई में हुए आतंकवादी हमले ने सबके दिलो को देहला दिया। उस वक्त बेंगलोर में था मैं । हमले के दुसरे दिन एक सिटी बस में ट्रेवल कर रहा था। बस में रेडियो चल रहा था। कन्नड़ में कुछ अन्नौसमेंट हुआ और उसके बाद गाना आया...'कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियो'... और एकदम से सन्नाटे का माहोल छा गया। गाने के लफ्जों का असर मन पे हो रहा था... न्यूज़ में देखे सीन याद आने लगे और आँखे झिलमिल हो उठी... तभी मेरे पीछे वाली सीट से थोडी सिसकने की आवाज़ आई तो थोड़ा पीछे मुद कर देखा मैंने। करीबन मेरी ही उमर का एक लड़का आंसू पोंछ रहा था। फिर मुह फेर कर दूसरी और देखा तो सामने एक कपल भी अपने आंसू रोक नही पा रहा था। दोनों की आँख में आंसू। और फिर पीछे पलट कर देखा तो और भी काफ़ी ऐसे लोग थे जो देश के इस हाल पर आंसू बहा रहे थे। कंडक्टर की आँखे भी भर आई थी। शायद बेबसी थी... या फिर गुस्से का बहाव...
इस से पहले ऐसा कभी ना सुना था ना कभी महसूस किया था। एक अरसे के बाद दिल बोल उठा...हाँ मैं भी हिन्दुस्तानी हूँ...
ना अल्फाज़ है कोई, न कोई ख़यालात,
लगे ये दिल खाली, बुझे हुए से जज़्बात।
हर तरफ़ आतंक का माहोल जो बना हुआ,
कैसे मैं मान लूँ, खुदा चलाए कायनात?
चंद धमाकों की मोहताज हो ज़िन्दगी जैसे,
हर लम्हा चल रहे यूँ दहशत के हालात।
चैन-ओ-सुकूं इन्सान अब पाए भी तो कहाँ से?
जब दिल में कुछ और, ज़ुबां पे दूजी बात।
सहमे हुए से दिल, बेनूर से रुखसार यहाँ,
जाने कब होगी सुबह-ए-अमन से मुलाक़ात?
हर एक के दिल की बात लिख दी है आपने ताईर भाई.. पर अब वक़्त जवाब देने का है.. इस बार अपने घावो पर हम मलहम नही लगाएँगे
ReplyDeleteसहनशीलता का खूब इम्तिहान हो चुका ,यह सीधे फैसले की घड़ी है.
ReplyDeleteसच कहा ,अब फैसले की घड़ी है
ReplyDeletebilkul...abhi nahi to kabhi nahi....
ReplyDeleteसीधे फैसले की घड़ी है.बहुत सुंदर .
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