कैसे कैसे हसीन ख्वाब दिखा जाते हो,
खूब है अंदाज़, दिल तोड़ के बहलाते हो।
मांग कर मुस्कान हमसे हाल-ए-बीमार में,
नाचारी का एहसास क्यों बार बार दिलाते हो?
मकाम-ए-ज़िन्दगी यहाँ थमा हुआ है कब से,
और तुम हो की एक दफ़ा लौट कर ना आते हो।
सहारा ना बने लेकिन मशवरा ज़रूर दिया,
दुनिया से सिखा हूनर हम पे आजमाते हो।
तसव्वुर में बसे हो और हकीकत से कहीं दूर,
'ताइर' से रिश्ता क्यों न तोड़ते ना निभाते हो???
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
ReplyDeleteमांग कर मुस्कान हमसे हाल-ए-बीमार में,
नाचारी का एहसास क्यों बार बार दिलाते हो
मकाम-ए-ज़िन्दगी यहाँ थमा हुआ है कब से,
ReplyDeleteऔर तुम हो की एक दफ़ा लौट कर ना आते हो।
सहारा ना बने लेकिन मशवरा ज़रूर दिया,
दुनिया से सिखा हूनर हम पे आजमाते हो।
wah bahut hi badhiya,makam-e-zindagiwala sher bahut hi achha laga khas karke.
वाह ताईर भाई, बहुत खूब!!
ReplyDeleteएक अच्छी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteगजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
सहारा ना बने लेकिन मशवरा ज़रूर दिया,
ReplyDeleteदुनिया से सिखा हूनर हम पे आजमाते हो।
' what a soft and touching creation, liked it, beautiful words selection'
regards
सहारा ना बने लेकिन मशवरा ज़रूर दिया,
ReplyDeleteदुनिया से सिखा हूनर हम पे आजमाते हो।
taeer miya.. kya kahu..
bahut gahri baat kahi hai aapne is sher mein.. lajawab hai..
सहारा ना बने लेकिन मशवरा ज़रूर दिया,
ReplyDeleteदुनिया से सिखा हूनर हम पे आजमाते हो।
:
kya baat hai!!! sahi kaha..
सहारा ना बने लेकिन मशवरा ज़रूर दिया,
ReplyDeleteदुनिया से सिखा हूनर हम पे आजमाते हो।
ediited well
needling te word is great
regards
तसव्वुर में बसे हो और हकीकत से कहीं दूर,
ReplyDelete'ताइर' से रिश्ता क्यों न तोड़ते ना निभाते हो???
bahut khoob....
aapne to bas pahle hi sher me katl kar diya
ReplyDeleteकैसे कैसे हसीन ख्वाब दिखा जाते हो,
खूब है अंदाज़, दिल तोड़ के बहलाते हो।
kamal ka likha hai.
बहुत खूब।
ReplyDeleteवाह-वाह....वाह-वाह....वाह-वाह....भाई ऐसे-ऐसे शेर सुनाते हो....अरे काहे को इतना सताते हो....ख़ुद तो जलते रहते हो...हमको भी जलाते हो....
ReplyDeletekya baat hai taeer bhai kya khoob likha hai..............
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