Thursday, August 28, 2008

कभी...

'कोफी विथ कुश' और 'कुश की कलम' वाले कुश भाई ने कुछ दिन पहले कहा की 'ताइर मियां... मिज़ाज बदलिए...' ये बात शायद मैं देर से समजा और ज़िन्दगी पहले समज गई... अचानक एक ऐसी करवट ली...की दिल से निकल आई ये ग़ज़ल...

तुम रुख से नकाब हटा कर मिलो तो कभी,
हम कह दे हाल-ए-दिल, सुनो तो कभी।

गुज़र गया वो दौर हर पल के साथ का,
चंद लम्हों के खातिर ही, पास रुको तो कभी।

पत्थर से इस वजूद को बस इंतज़ार है इतना,
झरना बन के बेह जाऊं, तुम छू लो तो कभी।

हम तो फ़ना कर दे खुदी, प्यार से जो कह दो,
वो गुमान अपने ज़हन का, भूलो तो कभी।

सफर-ए-तनहा उम्मीद-ए-वस्ल पे गुज़रा हैं,
कुछ कदम इस जानीब, तुम चलो तो कभी।

कुबूल है 'ताइर' को जो खता हुई थी उस से,
पर सज़ा भी क्या कम पायी, बोलो तो कभी ?

9 comments:

  1. हम तो फ़ना कर दे खुदी, प्यार से जो कह दो,
    वो गुमान अपने ज़हन का, भूलो तो कभी।

    --बहुत उम्दा-बेहतरीन लिखा!!

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  2. कॉफी विद कुश और कुश की कलम वाले कुश भाई का आपने मान रखा और अपनी ब्लॉग में इस अदने से नाम को लिखने की कृपा की.. इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद...

    ग़ज़ल में रूमानियत बरकरार रही... कोई एक शेर का नाम नही ले सकता की खास पसंद आया.. पूरी ग़ज़ल लाजवाब रही...

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  3. हम तो फ़ना कर दे खुदी, प्यार से जो कह दो,
    वो गुमान अपने ज़हन का, भूलो तो कभी।
    ताइर जी बहुत खूब।

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  4. सफर-ए-तनहा उम्मीद-ए-वस्ल पे गुज़रा हैं,
    कुछ कदम इस जानीब, तुम चलो तो कभी।

    कुबूल है 'ताइर' को जो खता हुई थी उस से,
    पर सज़ा भी क्या कम पायी, बोलो तो कभी ?

    very good...achche sher hain.

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  5. कुबूल है 'ताइर' को जो खता हुई थी उस से,
    पर सज़ा भी क्या कम पायी, बोलो तो कभी ?

    bhaut ghara
    dard aur sazaa
    kaash samjh paate aur koi louten ka rasta bhi hota

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  6. तुम रुख से नकाब हटा कर मिलो तो कभी,
    हम कह दे हाल-ए-दिल, सुनो तो कभी।
    bahut bahut sundar,itna kam kyu likh rahe bhai?

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  7. shukriya sabhi ka...

    sir g...aap ka sher...dil mein utar gaya...

    बस यही खता थी मेरे मिजाज में
    कि अपना मिजाज बदल ना सका...

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  8. पत्थर से इस वजूद को बस इंतज़ार है इतना,
    झरना बन के बेह जाऊं, तुम छू लो तो कभी।

    puri ghazal behtareen lekin yeh sher mera favorite hua...

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