काफ़ी विषयों पर काफ़ी कुछ लिखते हैं हम...पर उसी चीज़ पर बहोत कम लिखा गया हैं जो सहारा बनती हैं जज्बातों को लफ्ज़ देने के लिए... कभी इसी सोच से लिखी थी एक 'ग़ज़ल'... आज दोहराने का मन किया हैं...
दिल में दबे जज़्बात लिख दूँ तो बने ग़ज़ल,
तन्हाई में मेरे साथ गुफ्तेगु करे ग़ज़ल।
नासमजी थी अपनी, रोग-ए-इश्क लगा लिया,
बिखरी सी धड़कन में होंसला भरे ग़ज़ल।
हिसाब-ए-जहाँ से जब मेहरूम हूँ जिया,
हर मकाम-ए-सफर मेरे संग चले ग़ज़ल।
निगाहें अश्क बिन जब प्यासी रह जाए तो ,
सहारा ले लफ्जों का, ज़ार ज़ार बहे ग़ज़ल।
अब पूछो ना 'ताइर' से क्यों लिखता है वो ?
समझ पाता कोई तो हम ना कहते ग़ज़ल।
समज पाता कोई तो हम ना कहते ग़ज़ल।
ReplyDeletekya baat hai taaer miya.. aap to gazal king bante ja rahe hai..
अच्छा लगा आपकी ग़ज़ल पढ़कर!
ReplyDeleteनिगाहें अश्क बिन जब प्यासी रह जाए तो ,
ReplyDeleteसहारा ले लफ्जों का, ज़ार ज़ार बहे ग़ज़ल।
अब पूछो ना 'ताइर' से क्यों लिखता है वो ?
समज पाता कोई तो हम ना कहते ग़ज़ल।
bahut khoob ....aakhiri sher itna badhiya hai....isme samjh ki spelling theek kar do......
ji sir ji...lo kar di thik...
ReplyDeleteबहुत उम्दा,बधाई.
ReplyDeleteनिगाहें अश्क बिन जब प्यासी रह जाए तो ,
ReplyDeleteसहारा ले लफ्जों का, ज़ार ज़ार बहे ग़ज़ल।
""ख़ुद को बहलाने का सबब न मिले
दिल-ऐ-नादाँ का सहारा बने ग़ज़ल"
Regards
अरे वाह ! वाकई में क्या खूब है ग़ज़ल !
ReplyDeleteनिगाहें अश्क बिन जब प्यासी रह जाए तो ,
ReplyDeleteसहारा ले लफ्जों का, ज़ार ज़ार बहे ग़ज़ल।
अब पूछो ना 'ताइर' से क्यों लिखता है वो ?
समझ पाता कोई तो हम ना कहते ग़ज़ल।
bhaut bhaut pasand aaye gazal ke sare hi sher
bahut khub.......
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