Sunday, July 20, 2008

देश में...

पिछले कुछ महीनों से जो हालात बने हुए है देश में...उस पर कुछ लिखना लाज़मी था...कहीं 'भूमिपुत्र' और भाषा के नाम पर गरीबों तो कहीं आतंकवाद की दहशत से मासूमों को जीने नहीं दिया जा रहा... कहीं बाप बेटी के ही खून के इल्जाम में फसा था तो कहीं आरक्षण के मुद्दे पर बवाल मचा था... और अब 'आश्रम' में बच्चों की हत्याओं को ले कर कहीं शहर में फ़िर से दंगे भड़क रहे हैं... तो व्यथित मन से उठे ख्यालों को लफ्ज़ दे दिए...

आज भी वो ही आलम बना हुआ है देश में,
मज़हब-ओ-ज़बां पे सब बँटा देखा है देश में।

हजारों साल से लड़ते लड़ते थके नहीं लोग,
और कहे 'देशप्रेम' का जज्बा भरा है देश में।

जगह जगह इश्वर-अल्लाह के मकान खड़े करें,
बेघर करोड़ों का जब की काफिला है देश में।

चोरी, डकैती, खुदकुशी, बलात्कार, और क्या क्या,
'भगवान' की दया से खूब बढ़ रहा है देश में।

माहोल में सबको बदलाव ज़रूर चाहिए मगर,
फ़िर भी कोई ख़ुद को ना बदलता है देश में।


10 comments:

  1. बहुत सही कहा है-

    माहोल में सबको बदलाव ज़रूर चाहिए मगर,
    फ़िर भी कोई ख़ुद को ना बदलता है देश में।



    सुन्दर रचना है।

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  2. माहोल में सबको बदलाव ज़रूर चाहिए मगर,
    फ़िर भी कोई ख़ुद को ना बदलता है देश में।

    waah...bahut khoob.

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  3. बहुत खूब, ताईर भाई..सही शब्द दिये.

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  4. माहोल में सबको बदलाव ज़रूर चाहिए मगर,
    फ़िर भी कोई ख़ुद को ना बदलता है देश में।
    "very rightly said and composed"

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  5. माहोल में सबको बदलाव ज़रूर चाहिए मगर,
    फ़िर भी कोई ख़ुद को ना बदलता है देश में।

    umeed bas umeed hi zinda rakhe hai is desh ki nabj ko....

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  6. जगह जगह इश्वर-अल्लाह के मकान खड़े करें,
    बेघर करोड़ों का जब की काफिला है देश में।

    यह शेर दिल को छू गया। बधाई।

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  7. kaash..ki humkabhi sudhar jaye...kassh!

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  8. जगह जगह इश्वर-अल्लाह के मकान खड़े करें,
    बेघर करोड़ों का जब की काफिला है देश में।

    too good man!!! kaha tha abhi tak

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  9. जगह जगह इश्वर-अल्लाह के मकान खड़े करें,
    बेघर करोड़ों का जब की काफिला है देश में।
    bahut khub, kya likha hai

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  10. जगह जगह इश्वर-अल्लाह के मकान खड़े करें,
    बेघर करोड़ों का जब की काफिला है देश में।
    bhut sundar. sahi kha hai. very nice.

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