Tuesday, July 15, 2008

हर दिन ढलता हैं...

हर दिन ढलता हैं, शाम-ए-याद का तोहफा दे कर
बह जाए दिल जिसमें, बिखरे हुए अरमान ले कर
गुमसुम सा मन, लाचार से जज़्बात मेरे
रौशनी की चाह में, ढूंढ लाते अंधेरे...

एक सन्नाटे सा माहोल बन जाए चारों ऑर
फ़िर भी ज़हेन में चले सवालों का शोर
क्यों ख्वाब सारे बिखर जाते हैं?
क्यों हसी के लम्हे आंसू दे जाते हैं?
क्यों कोई उम्मीद बर नही आती?
क्यों ऐसे तनहा हम जीए जाते हैं?

जवाब जब कहीं से नज़र नही आता,
खयालों की टक्कर से जब हार जाता
तो अपने ही ऊपर मैं हूँ मुस्कुराता
और ' आने वाला कल अच्छा है'
ये ही सोच के दिल बहलाता...

9 comments:

  1. एक सन्नाटे सा माहोल बन जाए चारों ऑर
    फ़िर भी ज़हेन में चले सवालों का शोर

    और जवाब कहीं नही मिलते ...

    और ' आने वाला कल अच्छा है'
    ये ही सोच के दिल बहलाता...

    यही सही है ..हमेशा की तरह अच्छा लिखा है आपने

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  2. और ' आने वाला कल अच्छा है'
    ये ही सोच के दिल बहलाता...
    वाह...आप की सकारात्मक सोच का जवाब नहीं...
    नीरज

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  3. एक सन्नाटे सा माहोल बन जाए चारों ऑर
    फ़िर भी ज़हेन में चले सवालों का शोर
    क्यों ख्वाब सारे बिखर जाते हैं?
    क्यों हसी के लम्हे आंसू दे जाते हैं?
    क्यों कोई उम्मीद बर नही आती?
    क्यों ऐसे तनहा हम जीए जाते हैं?
    vha bhut gahari paktiya.

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  4. हमेशा की तरह लाजवाब.. बहुत उम्दा लिखावट है ताईर मियाँ

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  5. बहुत बढिया रचना है।बधाई।

    जवाब जब कहीं से नज़र नही आता,
    खयालों की टक्कर से जब हार जाता
    तो अपने ही ऊपर मैं हूँ मुस्कुराता
    और ' आने वाला कल अच्छा है'
    ये ही सोच के दिल बहलाता...

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  6. shukriya ek khoobsurat si nazm dene ke liye.......

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  7. बहुत बढिया रचना है...बधाई!!

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  8. और ' आने वाला कल अच्छा है'
    ये ही सोच के दिल बहलाता...
    "very true,nice composition"

    'dil ko behlane ke liye khyal accha hai.

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  9. सुन्दर लिखा है आपने

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