Sunday, July 13, 2008

थमी हुई सी हैं जिंदगी...

थमी हुई है जिंदगी आज उस मकाम पर,
पत्थर बन गया हूँ, मैं भी खुदा के नाम पर।

ना खुशी है ना ग़म, सारे एहसास लापता,
फ़िर क्या हसना-रोना, आगाज़ पे या अंजाम पर?

दुनिया से जो सीखा उसी को इस्तेमाल किया,
फ़िर जाने क्यों हैरान है सब मेरे इस काम पर?

काफ़िर का लगा तोहमत, जब हकीकत जान चुका,
लेकिन तुम्हे मेरा शुक्रिया अदा, दिए इनाम पर।

आसमां वाले का इन्साफ, 'ताइर' को ना समजाओ ,
जब बिकती है जिंदगी यहाँ चंद सिक्को के दाम पर।

8 comments:

  1. आसमां वाले का इन्साफ, 'ताइर' को ना सम्जओ,
    जब बिकती है जिंदगी यहाँ चंद सिक्को के दाम पर।
    bhut sundar.ati uttam.

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  2. दुनिया से जो सीखा उसी को इस्तेमाल किया,
    फ़िर जाने क्यों हैरान है सब मेरे इस काम पर?

    बहुत खूब ...जिंदगी की सच्चाई है यह ..बहुत सुंदर लिखा है

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  3. likha to bahut khubsoorat hai 'Taier' sahab..pur itna dukh kisliyea??

    zindgi ka ek pahloo khubsoort bghi to hai...zara uske bare me bhi bayan kijiye!

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  4. 'ताइर' भाई
    एक बार फ़िर इस कलाम के जरिये आप ने अपनी कलम का लोहा मनवा लिया है...बेहतरीन काविश है ये आप की...लिखते रहें...बहुत खूब.
    नीरज

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  5. दुनिया से जो सीखा उसी को इस्तेमाल किया,
    फ़िर जाने क्यों हैरान है सब मेरे इस काम पर?
    " bhut sunder"

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  6. आसमां वाले का इन्साफ, 'ताइर' को ना समजाओ ,
    जब बिकती है जिंदगी यहाँ चंद सिक्को के दाम पर।

    ye jyada pasand aaya.....agli bar ek nazm ho jaye ?

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  7. बिकती है जिंदगी यहाँ चंद सिक्को के दाम पर।

    बहुत खूब ताईर मियाँ.. क्या शेर कहा है आपने

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