रात को देर तक जागना, तनहाई की मेहफिल सजाना, सन्नाटों से बातें करना...कभी दुनियादारी से भागने का सबक था ये...और अब आदत...इसी आदत पर कुछ दिन पहले ये ग़ज़ल कही थी...
हर रात जागती हैं मेरी तनहाई, ना जाने क्यों?
संग होती रहती हैं मेरी रुसवाई, ना जाने क्यों?
यूँ तो उजाले भर पीछा नहीं छोड़ती मगर,
कड़ी धूप में खो जाए परछाई, ना जाने क्यों?
तुमने वादा किया था, दिल को ऐतबार भी था,
लेकिन मौके पे दुनियादारी दिखाई, ना जाने क्यों?
हर तरफ़ एक सन्नाटे का माहोल है बना हुआ,
फिर भी किसी की पुकार गुनगुनाई, ना जाने क्यों?
हम ज़िन्दगी से या ज़िन्दगी हम से नाराज़ रही?
ना आज तलक ये बात समझ आई, ना जाने क्यों?
यूँ तो उजाले भर पीछा नहीं छोड़ती मगर,
ReplyDeleteकड़ी धूप में खो जाए परछाई, ना जाने क्यों?
wahhhh
हर तरफ़ एक सन्नाटे का माहोल है बना हुआ,
फिर भी किसी की पुकार गुनगुनाई, ना जाने क्यों?
bahut khoob
aapko zamane ke baad padha hai bahut achha laga
ab jaldi jaldi likha kare
aapke likhna shuru se bahut achha lagta raha hai
honsla afzayi ke liye shurkiya shraddha ji...
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