Monday, May 12, 2008

लोग तुझे ...

लोग तुझे मूरत में इसी लिए बिठाते हैं ,
की तू बस देखा कर, वो जो किए जाते हैं।

जब चाहा पूज लिया, जब चाहा डूबा दिया ,
बन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।

भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
दीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।

हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
होगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।

'ताइर' को काफिर कहने वाले मेरे वाईज़,
मज़हब से आदमी की पहचान बनाते हैं।

4 comments:

  1. बढ़िया भाव.. ताईर मिया
    मेरी रचना में जो ढील लगी थी आपको यहा पूरी कर दी आपने.. बहुत अच्छे

    ReplyDelete
  2. हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
    होगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।


    bahut badhiya sher..
    overall bahut khoobsoorat

    ReplyDelete
  3. भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
    दीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।

    ye sher achcha laga.

    ReplyDelete
  4. जब चाह पूज लिया, जब चाह डूबा दिया ,
    बन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।
    kya baat hai. bhut khub.

    ReplyDelete