लोग तुझे मूरत में इसी लिए बिठाते हैं ,
की तू बस देखा कर, वो जो किए जाते हैं।
जब चाहा पूज लिया, जब चाहा डूबा दिया ,
बन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।
भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
दीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।
हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
होगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।
'ताइर' को काफिर कहने वाले मेरे वाईज़,
मज़हब से आदमी की पहचान बनाते हैं।
की तू बस देखा कर, वो जो किए जाते हैं।
जब चाहा पूज लिया, जब चाहा डूबा दिया ,
बन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।
भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
दीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।
हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
होगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।
'ताइर' को काफिर कहने वाले मेरे वाईज़,
मज़हब से आदमी की पहचान बनाते हैं।
बढ़िया भाव.. ताईर मिया
ReplyDeleteमेरी रचना में जो ढील लगी थी आपको यहा पूरी कर दी आपने.. बहुत अच्छे
हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
ReplyDeleteहोगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।
bahut badhiya sher..
overall bahut khoobsoorat
भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
ReplyDeleteदीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।
ye sher achcha laga.
जब चाह पूज लिया, जब चाह डूबा दिया ,
ReplyDeleteबन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।
kya baat hai. bhut khub.