आज एक ऐसी फिल्म के बारे में बात करनी है जो की इस साल की सबसे कामियाब फिल्म बनने जा रही है...नाम है 'संजू'। पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई इस फिल्म की ज़्यादातर लोग बहोत तारीफ़ कर रहे हैं और फिल्म ज़बरदस्त पैसा बना भी रही है । पर क्या वाकई ये इतनी उमदा और बेहतरीन फिल्म है??
जवाब है... ना । संजू...फिल्म नहीं, इमेज मेकओवर का मास्टरपीस है !
कुछ क्षणों के लिए भूल जाईये की ये एक जानेमाने फिल्म एक्टर के जीवन पर बनी फिल्म है और सोचिये । क्या ऐसी ही कहानी कोई आम आदमी की होती या फिर काल्पनिक ही होती तो क्या उसे भी उतना ही प्यार और पैसा मिलता?
बिलकुल नहीं ।
इस फिल्म को अगर आप ज़रा गौर से देखे तो केवल एक ही नज़रिये से दिखाई गयी कहानी है कि 'वह बेगुनाह है'। क्या वाकई?
ज़रा सोचिये, कौन सा सीधा आदमी हर तरह के ड्रग्स लेता है और फिर भी साफ़ रहता है? पापा से सभी डरते है और माँ भी बीमार होती है, तो क्या ड्रग्स लेना शुरू कर दे? कौन सा साफ़ आदमी अपने परिवार की सुरक्षा के लिए एके-56 रखता है? क्या जो गन नहीं रखते उन्हें अपने परिवार की फिक्र नहीं? और 350 से ज़्यादा लड़कियों के साथ सोना कौन से संस्कार है? शबडकोष में विशेष शब्द है इसके लिए।
फिल्म में माँ-बाप को पूरी तरह लाचार बताया गया है और हम मान भी ले? अरे हमारे आसपास कोई बच्चा ज़रा सी शैतानी कर दे तो भी हम बोल देते है की 'क्या ऐसे संस्कार दिए है माँ-बाप ने' और यहाँ तो हर गुनाह पे माँ-बाप से बस मिलती है तो हौंसला अफ़ज़ाई और उम्मीद की सलाह! वाह !
ऐसा कैसे मुमकिन है की कोई आदमी जीवन में जो भी गुनाह करता है सब औरों की या हालात की वजह से? और अगर यह सब जायज़ है तो फिर तो कोई गुन्हेगार हो ही नहीं सकता...क्योंकि सारा खेल ही संग और समय का है। जब कुछ नहीं बचता तो मामला मिडीया पे थोप दो क्योंकि उन्हें 'मसाला' चाहिए! अरे भाई, अगर ऐसा ही होता तो वह मसाला औरों के नाम पे क्यों नहीं छपा? दुसरे भी तो कलाकार थे और है।
यह तो हुई बात मुख्य किरदार की जिस पर फिल्म बनी है। अब अगर मैं इसे एक फिक्शनल मूवी के नज़रिये से देखूं तो भी कहाँ कोई दम है? फिल्म कुछ चुनिंदा सीन्स को जोड़ के बनाई हो ऐसे चलती है । दो कलाकार रणबीर और विक्की कौशल की अदाकारी ने जान भरी है फिल्म में । भावनात्मक परिस्थितियाँ दिखा कर और उन्हें शब्दों की माला में सजा कर परोस दिया बस ।
हिरानी जी, यह 'बॉयोपिक' तो नहीं है, यह तो बस आप का 'नजरिया' है जो आप ने एक 'इमेज मेकओवर' के लिए इस्तेमाल कर लिया। इल्यूज़न ऐसा तो क्रिएट किया कि लोग देख भी रहे हैं और समझ भी नहीं पा रहे कि वाकई क्या देखने आये थे और क्या देख के जा रहे है!
लगे रहो राजू भाई...
जवाब है... ना । संजू...फिल्म नहीं, इमेज मेकओवर का मास्टरपीस है !
कुछ क्षणों के लिए भूल जाईये की ये एक जानेमाने फिल्म एक्टर के जीवन पर बनी फिल्म है और सोचिये । क्या ऐसी ही कहानी कोई आम आदमी की होती या फिर काल्पनिक ही होती तो क्या उसे भी उतना ही प्यार और पैसा मिलता?
बिलकुल नहीं ।
इस फिल्म को अगर आप ज़रा गौर से देखे तो केवल एक ही नज़रिये से दिखाई गयी कहानी है कि 'वह बेगुनाह है'। क्या वाकई?
ज़रा सोचिये, कौन सा सीधा आदमी हर तरह के ड्रग्स लेता है और फिर भी साफ़ रहता है? पापा से सभी डरते है और माँ भी बीमार होती है, तो क्या ड्रग्स लेना शुरू कर दे? कौन सा साफ़ आदमी अपने परिवार की सुरक्षा के लिए एके-56 रखता है? क्या जो गन नहीं रखते उन्हें अपने परिवार की फिक्र नहीं? और 350 से ज़्यादा लड़कियों के साथ सोना कौन से संस्कार है? शबडकोष में विशेष शब्द है इसके लिए।
फिल्म में माँ-बाप को पूरी तरह लाचार बताया गया है और हम मान भी ले? अरे हमारे आसपास कोई बच्चा ज़रा सी शैतानी कर दे तो भी हम बोल देते है की 'क्या ऐसे संस्कार दिए है माँ-बाप ने' और यहाँ तो हर गुनाह पे माँ-बाप से बस मिलती है तो हौंसला अफ़ज़ाई और उम्मीद की सलाह! वाह !
ऐसा कैसे मुमकिन है की कोई आदमी जीवन में जो भी गुनाह करता है सब औरों की या हालात की वजह से? और अगर यह सब जायज़ है तो फिर तो कोई गुन्हेगार हो ही नहीं सकता...क्योंकि सारा खेल ही संग और समय का है। जब कुछ नहीं बचता तो मामला मिडीया पे थोप दो क्योंकि उन्हें 'मसाला' चाहिए! अरे भाई, अगर ऐसा ही होता तो वह मसाला औरों के नाम पे क्यों नहीं छपा? दुसरे भी तो कलाकार थे और है।
यह तो हुई बात मुख्य किरदार की जिस पर फिल्म बनी है। अब अगर मैं इसे एक फिक्शनल मूवी के नज़रिये से देखूं तो भी कहाँ कोई दम है? फिल्म कुछ चुनिंदा सीन्स को जोड़ के बनाई हो ऐसे चलती है । दो कलाकार रणबीर और विक्की कौशल की अदाकारी ने जान भरी है फिल्म में । भावनात्मक परिस्थितियाँ दिखा कर और उन्हें शब्दों की माला में सजा कर परोस दिया बस ।
हिरानी जी, यह 'बॉयोपिक' तो नहीं है, यह तो बस आप का 'नजरिया' है जो आप ने एक 'इमेज मेकओवर' के लिए इस्तेमाल कर लिया। इल्यूज़न ऐसा तो क्रिएट किया कि लोग देख भी रहे हैं और समझ भी नहीं पा रहे कि वाकई क्या देखने आये थे और क्या देख के जा रहे है!
लगे रहो राजू भाई...
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