देख कर ये हाल-ए-जहाँ, परेशां सा रेह जाता हूँ
सवालों के भंवर में बड़ा उलझ जाता हूँ
क्यों ये ऐसा है, क्यों वो वैसा हैं?
इन्सान की पहचान क्यों उसका पैसा हैं?
ना चाह कर भी उस दौड़ में शामिल हुआ मैं भी
दुनिया से अलग चलने को, ना काबिल हुआ मैं भी
चाहता हूँ क्या और क्या कर रहा हूँ?
रोज़ लगता है मैं नाकाम मर रहा हूँ...
अगर है खुदा तो, दस्तूर-ए-जहाँ बदल,
वरना उडा ले 'ताइर' को, की किस्सा हो ख़तम...
Tuesday, May 27, 2008
Monday, May 12, 2008
लोग तुझे ...
लोग तुझे मूरत में इसी लिए बिठाते हैं ,
की तू बस देखा कर, वो जो किए जाते हैं।
जब चाहा पूज लिया, जब चाहा डूबा दिया ,
बन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।
भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
दीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।
हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
होगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।
'ताइर' को काफिर कहने वाले मेरे वाईज़,
मज़हब से आदमी की पहचान बनाते हैं।
की तू बस देखा कर, वो जो किए जाते हैं।
जब चाहा पूज लिया, जब चाहा डूबा दिया ,
बन्दे तेरे अजीब सा ये त्यौहार मनाते हैं।
भूखे प्यासे इन्सान बाहर खड़े मगर,
दीवारों में बंध, पत्थर खूब सजाते हैं।
हमें तो तेरे वजूद पर भी शक है यहाँ ,
होगा तो कभी बोलेगा, सोच कर सुनाते हैं।
'ताइर' को काफिर कहने वाले मेरे वाईज़,
मज़हब से आदमी की पहचान बनाते हैं।
Thursday, May 8, 2008
है वजूद खुदा का ?
है वजूद खुदा का, कैसे मान लिया आप ने?
अनजाने डर को खूब नाम दिया आप ने ...
हम को तो ऐतबार का सबब नही मिलता ,
कहीं बेवजह तो नही, भरोसा किया आप ने?
अपने ही बंदो से जो बेपर्दा न हो सका,
फलक पे मकाम उसका, मान लिया आप ने ...
गर है वह हर जगह तो कैद क्यों करना पड़ा?
या कहो उसे भी कोने में बिठा दिया आप ने ...
दहलीज़ पे जा के चंद सिक्के चढा आते हो,
खुदा से भी कारोबार, खूब किया आप ने ...
औरो को खुशी दे, 'ताइर' दुआ कर लेता ,
उस पर भी बना दी कितनी कहानियाँ आप ने ?!!
अनजाने डर को खूब नाम दिया आप ने ...
हम को तो ऐतबार का सबब नही मिलता ,
कहीं बेवजह तो नही, भरोसा किया आप ने?
अपने ही बंदो से जो बेपर्दा न हो सका,
फलक पे मकाम उसका, मान लिया आप ने ...
गर है वह हर जगह तो कैद क्यों करना पड़ा?
या कहो उसे भी कोने में बिठा दिया आप ने ...
दहलीज़ पे जा के चंद सिक्के चढा आते हो,
खुदा से भी कारोबार, खूब किया आप ने ...
औरो को खुशी दे, 'ताइर' दुआ कर लेता ,
उस पर भी बना दी कितनी कहानियाँ आप ने ?!!
Tuesday, May 6, 2008
EK KASH MAAR LE...
Hai kya haal ab parwah na kar
beeti hui baat dil mein na bhar
saanso ke gubbare foonk se utaar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Aawara lamho se zindagi chura tu
sannate ke saaz se mehfil sajaa tu
koi fikar koi dard na ho, aise waqt guzaar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Masruf zamane se kya taluq bhi ho?
tere sang tanhai, jab mashuq si ho
khamosh chale dua, khuda ko pukar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Saanso ke gubbare foonk se utaar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
beeti hui baat dil mein na bhar
saanso ke gubbare foonk se utaar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Aawara lamho se zindagi chura tu
sannate ke saaz se mehfil sajaa tu
koi fikar koi dard na ho, aise waqt guzaar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Masruf zamane se kya taluq bhi ho?
tere sang tanhai, jab mashuq si ho
khamosh chale dua, khuda ko pukar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Saanso ke gubbare foonk se utaar le
ek jashn aur manaa, ek kash maar le...
Saturday, May 3, 2008
DIL KI BAAT SACH HAI...
Dil ki baat sach hain, jaanta hoon main,
Par zehan bhi juth nahi, maanta hoon main.
Shoharat se hi jahan kamiyabi tolega,
Aur keemat-e-jazbat pehchanta hoon main.
Kabhi sikko sur mein, kabhi apni dhun mein,
Waqt ke saath zindagi aise dhaalta hoon main.
Baki har lamha bhale chheen le duniya,
Din mein do pal hi apne chahta hoon main.
Badi anmol cheez ki TAEER dua kar raha,
Par sukun se zyada, kya mangta hoon main?
Par zehan bhi juth nahi, maanta hoon main.
Shoharat se hi jahan kamiyabi tolega,
Aur keemat-e-jazbat pehchanta hoon main.
Kabhi sikko sur mein, kabhi apni dhun mein,
Waqt ke saath zindagi aise dhaalta hoon main.
Baki har lamha bhale chheen le duniya,
Din mein do pal hi apne chahta hoon main.
Badi anmol cheez ki TAEER dua kar raha,
Par sukun se zyada, kya mangta hoon main?
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