Sunday, April 2, 2017

बच्चे, पेरेंट्स और गैजेट्स

हम उस दौर में जी रहें हैं जहाँ टेक्नोलॉजीने हमारी ज़िन्दगी जितनी आसान कर दी है उतनी ही लाचार भी हैं। हम चीजों को आसान बनाने के चक्कर में शायद इतने उलझ गए की रुकना कहाँ है शायद हम समझ नहीं पा रहे।  और एक आम इंसान पर इसका फायदा जो हुआ है उतना ही नुकसान।

मेरे हम उम्र लोग इस बात  से बिलकुल तालुक रखेंगे की जो स्मार्टफोन उनके लिए दुनिया से जुड़े रहने का जरिया है, वहीँ उनके बच्चों के लिए खिलौना! बच्चे मैदान कम मोबाईल पर ज़्यादा होते हैं। बहोतों बार मैं देखा है की माता-पिता अपने बच्चों को मोबाईल ऑपरेट करते हुए देख एक गर्व सा महसूस करतें हैं। नहीं होनी चाहिए लेकिन मुझे थोड़ी तकलीफ ज़रूर होती हैं। जिस उम्र में बच्चें खेलने कूदने चाहिए, जिस से की उनका शारीरिक विकास ठीक से हो उस उम्र में गैजेट्स से उनको अपाहिज बनाने तक का काम हो रहा है  और वो भी गर्व से।  

और फिर पेरेंट्स की फ़रियाद भी होती हैं की बच्चा या तो मोबाईल से खेलता रहता हैं या टीवी देखता रहता हैं।  
मैं उन पेरेंट्स से पूछना चाहता हूँ की आखिर ये हुआ कैसे? क्या आपने कभी सोचा की बच्चा आपने जो किया वो ही कर रहा है और ना की जो कहा। बचपनमें हम देख कर सीखते है, सुन कर नहीं।  

बच्चे को जब आपका वक्त चाहिए तब आप खुद व्हाट्सएप्प या फेसबुक लेके बैठे रहते हैं। उसके सवालों का जवाब देने का वक़्त ही कहाँ था आपके पास।  आप उसके फोटो और विडियो पे वाहवाही कमाने बैठे थे।  बच्चा कुछ कर रहा है कैमरे की नहीं अपनी आँखों से देखो, उसे अच्छा महसूस होगया और होगा।  वरना बच्चा धीरे धीरे वही सारी चीज़ें सीखता रहा। मैं कुछ ऐसे पेरेंट्स को भी जानता हूँ जिन्होंने २-३ साल के बच्चे की प्रोफ़ाइल भी फेसबुक पे बना रक्खी हैं।  अरे, आखिर ज़रूरत क्या है? आपकी प्रोफ़ाइल ही काफ़ी नहीं क्या? उसका वक्त आने पे बच्चा भी बना ही लेगा ना। 

बच्चे को दुनिया में लाने वाले आप है।  उसे आपका वक़्त और प्यार चाहिए ना की लोगों की आपके सोशल मीडिया प्रोफाइल पे वाहवाही।  गैजेट्स को कमज़ोरी नहीं, ताकत बनाओ।  आदत नहीं, ज़रिया बनाओ।  या फिर उस दिन के लिए तैयार रहो जिस दिन बच्चा अपने ही घर में आप से व्हाट्सएप्प या स्नैपचैट से बात करेगा और आप पछताने के सिवा कुछ नहीं कर पाओगे।  

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