एक लम्बे विराम के बाद फिर से ब्लॉग पर लिखाई की और लौटा हूँ । एक नयी ग़ज़ल, हज़ल की तरह पेश है...एक पूरा ही 'फ्यूज़न वर्ज़न'...सोच से लेकर लफ़्ज़ों तक...उम्मीद है पसंद आएगा आपको ।
इस दौर में सबकुछ तो फ्यूज़न हो रहा हैं,
तभी, एक-दूजे की समज का कंफ्यूज़न हो रहा हैं !
इस असर से कुदरत भी कहाँ बच पाई देखो,
एक रुतु में मिक्स दूसरा सीज़न हो रहा हैं !
सोसिअल होने के लिए भी नेटवर्किंग साइट चाहिए,
सोचो कितना लाजवाब अपना रीज़न हो रहा हैं !
जज़्बात भी हमारे ठन्डे क्यूँ न होंगे,
डाएट भी ज़्यादातर अपना फ्रोज़न हो रहा हैं !
मेरी ग़ज़ल शिकार हुई इस माहोल की कुछ ऐसे,
र्हायिम(rhyme) करने काफिया का 'इंग्लिश वर्ज़न' हो रहा हैं !
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