आओ चलो हम भी कुछ बवाल मचाते हैं,
अमन-ओ-सुकूं को आवाज़ लगाते हैं !
अमन-ओ-सुकूं को आवाज़ लगाते हैं !
बड़े दिन हो गए कोई हरकत नहीं की,
यारों आज सारी ही कसर मिटाते हैं l
कल तक जो बोले तो अनसुने रहें,
अब चुपचाप हम दास्ताँ कह जातें हैं l
तेरी इनायत भी क्या खूब बरसती है,
'काफ़िर' कहलाए वो जो सवाल उठाते हैं l
'ताइर' की बेफ़िक्री पे शक क्यों है उन्हें,
जो हर बार, सिर्फ ताना दे आते हैं !