Tuesday, September 23, 2008

ये ही हाल...

ये ही हाल हमेंशा से बना रहा अपना,
हकीकत समझे नहीं, बुनते रहे सपना।

तुम कहो दीवानगी, हम समझे फितरत,
दोनों ही हाल में नामुमकिन हैं खुदी बदलना।

पूछे अगर कोई तो हम क्या कहें बोलो,
साथ तेरा माँगा था या तन्हा सफर में चलना?

इसलिए कर दिया दफ्न हर जज्बात को हमनें,
देखा है दर-ए-मंजिल पे सपनों का बिखरना।

क्या समझेगा ज़माना मकाम-ए-'ताइर' को,
साँस थमी नहीं पर दिल ने छोड़ दिया धड़कना।

Tuesday, September 2, 2008

रॉक ओन - लिव यौर ड्रीम

आज अपनी 'इमेज' से दूर हो के कुछ लिख रहा हूँ... मूवी 'रॉक ओन' पर... और आप बिल्कुल ही मत सोचियेगा की मैं एक और मूवी रिव्यू लिख रहा हूँ... नहीं, मैं तो बस उस मूवी की तारीफ़ में कुछ लिख रहा हूँ...

ये कहानी एक 'रॉक बैंड' की...कॉलेज के दिनों का सबसे कामियाब रॉक बैंड... ४ लोग... सबकी अपनी एक अलग पहचान ...फ़िर भी उस पहचान को भूल कर जीते हैं केवल एक पहचान के खातिर...'मैजिक ' (बैंड) की खातिर...

लेकिन हर व्यक्ति में एक 'इगो' कहीं न कहीं छुपा होता है...और क्रिएटिव लोगो में शायद थोड़ा ज़्यादा... (हाला की समजा ये जाता हैं की वो लोग 'डाउन टू अर्थ' होते हैं...पर ये ग़लत हैं...क्रिएटिव लोगों को अपने 'मान' का ज़्यादा ख़याल रहता हैं... शायद ना दिखाए...पर दिल में तो होता ही हैं) वो ही चीज़ 'मैजिक' को तोड़ती हैं...

और गुज़र जाते हैं १० साल... ४ लोग...४ अलग अलग शख्सियत...

एक है जो बीती हुई बातों को भुला कर आगे बढ़ जाता हैं जीवन में...यादों को बस दिल में दफन कर देता हैं...
दूसरा उन्ही यादों में उलझा रहता हैं... खूब टेलेंटेड होने के बावजूद बन के रह जाता हैं एक नाकामियाब इन्सान...
तीसरा...पहले जैसा था बिल्कुल वैसा ही... लूक्स बदल जाता हैं...स्वाभाव नहीं...ज़िन्दगी जब जब जो जो देती हैं...उसे अपना कर ही खुश हैं...
और चौथा... ज़िन्दगी से लड़ता हैं... हर पल एक लम्हा और चुराता हैं बची ज़िन्दगी में से... केवल एक ही सपना मन में...की 'मैजिक' फ़िर से जिंदा हो और स्टेज पर परफोर्म करें...

४ अलग अलग पहलू ज़िन्दगी के...४ अलग अलग शख्स एक ही ग्रुप के... कोई जज़्बात दिखता हैं...कोई दबा देता हैं... कोई जूठी हसीं सजा लेता हैं... तो कोई ज़िन्दगी का हर हाल अपना लेता हैं...

पर कहीं ना कहीं एक जज़्बा जो है...वो जिंदा हैं... और उसी के लिए फ़िर से मिलते हैं सब...और छा जाता हैं... 'मैजिक'...

मूवी देखते हुए काफ़ी यादें ताज़ा हो गयी... कितने सपने थे कॉलेज के दिनों के... क्या क्या प्लान्स किए थे दोस्तों के साथ...पर सब बिखर गए...'सेटल' होने के चक्कर में सब सपनों से 'बिछड़' गए... या फ़िर अपने आप से? ये बात तो बस दिल ही जानता हैं...

लेकिन...कुछ सपनें जो मरे नहीं...केवल बिछडे थे वो फ़िर मिल गए... शायद कभी सच भी हो जायेंगे...

तब तक के लिए...

'रॉक ओन'